Yatna Vivek यत्न विवेक : ब्राह्य यत्न और आभ्यंतर यत्न
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यत्न दो प्रकार के माने गए हैं।
1 ब्राह्य यत्न 2 आभ्यंतर यत्न
ब्राह्य यत्न कुल 11 हैं।Trick ट्रिक:-ब्राह्य यत्न
अविश्वास :अ-अघोष
वि-विवार
श्वास-श्वास
1 अविश्वास : (अघोष, विवार और श्वास)
अविश्वास में शामिल वर्ण- 1,2 (: विसर्ग), श, ष, स, यम (1,2), जिह्वामूलीय, उपूपध्मानीय।
2 संवार, नाद, घोष - 3,4, 5 अनुस्वार (.), है, यम (3, 4 का) और अंतस्थ वर्ण यानि य, व, र, ल
3 अल्पप्राण:- 1,3,5, अंतस्थ, अनुस्वार और 1,3 के यम
4 महाप्राण:- 2,4, उष्म वर्ण यनि श, ष, स, ह, विसर्ग (:), अद्र्धविसर्ग और 2,4 के यम
-ये 8 ब्राह्य यत्न व्यंजनों के हैं
-शेष सभी तीनों स्वरों के हैं।
1 उदात्त
2 अनुदात्त
3 स्वरित
आभ्यंतर प्रयत्न
-आभ्यंतर यत्न कुल 5 हैं।1 स्पृष्ट/उदित:- कु, चु, टु, तु, पु (सभी व्यंजन) कुल 25 हैं।
2 इषत् स्पृष्ट:- अंतस्थ वर्ण (य, र, व, ल)। ये कुल 7 होते हैं।
-क्योंकि य व और ल दो-दो प्रकार के होते हैं। इन्हें यहां समझना जरूरी है कि य, व और ल दो-दो प्रकार के किस प्रकार से हैं।
-साधारण य, व और ल के अलावा इन्हें यँ , वँ और लँ में भी गिना जाता है। इस कारण ये सात होते हैं। ऐसे गिने ( य, यँ, व, वॅँ, र, ल, लँ )। केवल र अकेला होता है।
3 इषत् विवृत:- उष्म वर्ण (श,ष, स, है)। ये 4 हैं।
4 विवृत:- स्वर (ये 132 होते हैं)
5 संवृत:- ह्रस्व अ का लौकिक दशा में प्रयोग संवृत होता है जबकि व्याकरण दशा में इसका प्रयोग विवृत होता है।...................................................महत्वपूर्ण प्रश्न
-आभ्यंतर यत्न 5 हैं लेकिन सिद्धान्त कौमुदी में 4 माने गए हैं। इषद् विवृत को विवृत में ही मान लिया गया है।
-प्रत्येक वर्ण का आभ्यंतर यत्न एक ही होता है।
-सभी स्वरों के ब्राह्य यत्न 3-3 होते हैं। उदात्त, अनुदात्त और स्वरित।
-सभी व्यंजनों के 4-4 ब्राह्य यत्न होते हैं।
-सभी स्वरों के कुल यत्न 4 होते हैं। ( 1 आभयंतर यत्न और 3 ब्राह्य यत्न )
-सभी व्यंजनों के कुल यत्न 5 होते हैं। ( 1 आभयंतर यत्न और 4 ब्राह्य यत्न )
-उच्चारण स्थान व आभ्यंतर यत्नों का प्रयोग सवर्ण संज्ञा के प्रकरण में किया जाता है।
-ब्राह्य यत्नों का प्रयोग आंतरतम्य परीक्षा में किया जाता है।
-ब्राह्य यत्नों की सहायता से सवर्ण संज्ञा का ग्रहण करना आंतरतम्य परीक्षा कहलाता है।
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