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sanskrit me vachya parivartan : संस्कृत में वाच्य परिवर्तन कैसे करते हैं

How do the literary changes in Sanskrit

संस्कृत में वाच्य परिवर्तन करना



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संस्कृत में वाच्य परिवर्तन कैसे करते हैं
sanskrit me vachya parivartan 

Sanskrit Vachya parivartan वाच्य परिवर्तन Important questions for Sanskrit Vachya parivartan TGT, PGT, PRT, REET, CTET, UPTET, HTET, RPSC, NET, SLAT, UPSC, UPPSC, NET, SLAT,   Exams. 

जब हम वाच्य परिवर्तन करेंगे तो तीन चीजों का विशेष ध्यान रखना है। इन तीन चीजों के बाहर कुछ भी नहीं है। ये तीन चीजें हैं

कर्ता, कर्म और क्रिया

सबसे पहले हम कर्मवाच्य से कर्तृवाच्य बनाना सीखते हैं। उदाहरण से समझेंगे तो आसानी होगी।

उदा.:-त्वया किं क्रियते ।

मान लीजिये यह उदाहरण है जो कि कर्मवाच्य में दिया गया है। जब इसे कर्तृवाच्य में बदलते हैं तो यह कुछ इस प्रकार बनेगा।

त्वं किं करोषि ।

अब समझने की बात यह है कि कहां परिवर्तन हुआ है और वह  परिवर्तन कया है।
समझने के लिए दोनों वाकयों को एक साथ लिखते हैं:-

त्वया किं क्रियते ।
त्वं किं करोषि ।

पहले वाकय में कर्ता त्वया है। जो कि तृतीय विभकित में है। इसे प्रथमा विभकित में बदला गया है, जो कि बदल कर त्वं हो गया है।
किं कर्म है जो कि वैसे का वैसा ही है। क्रियते क्रिया है, जो कि साधारण क्रिया में बदलकर करोषि हो गई है। क्रिया कर्ता के अनुसार है। यानि कर्ता मध्यम पुरुष एक वचन है तो क्रिया भी मध्यम पुरुष एक वचन होगी। दूसरी बात कर्तृरि वाच्य में क्रिया हमेशा साधारण तरीके से लिखी जाएगी।

(कृ धातु के रूप याद करना जरूरी है ।)

दूसरा उदाहरण देखते हैं:-
कर्मवाच्य:-पुत्रेण पिता सेव्यते ।
कर्तृवाच्य:-पुत्र: पितरं सेवते । (यहां खुद पता लगाने का प्रयास करें कि कया कया परिवर्तन हुए हैं ।)

(पितृ शबद और सेव् धातु के रूप याद करना जरूरी है।)

कर्तृरि वाच्य से भाव वाच्य में परिवर्तन करना

इसे भी उदाहरण से ही समझते हैं।

कर्तृरि वाच्य:-पुष्पाणि विकसन्ति ।
भाव वाच्य:- पुष्पै विकस्यते ।

कर्तृरि वाच्य से भाव वाच्य में परिवर्तन करते समय पहली बात तो यह है कि कर्तृरि वाच्य में कर्ता प्रथमा विभकित में होता है जिसे भाव वाच्य में परिवर्तित करते समय तृतीय विभकित में बदलते हैं।
दूसरी बात यह है कि कर्तृरि वाच्य में क्रिया हमेशा एकदम साधारण मिलेगी, जिसे हम अलग तरीके से लिखेंगे जैसा कि उदाहरण में दिया गया है।

(पुष्प शबद के रूप याद करें ।)

भाव वाच्य से कर्तृवाच्य में परिवर्तित करना

इसे भी उदाहरण से ही समझना सही रहेगा।

भाव वाच्य:- बालकेन क्रिड्यते ।
कर्तृवाच्य :- बालक: क्रीडति ।

यह काफी आसान है। पहली बात यह ध्यान रखें कि भाव वाच्य में कर्ता तृतीय विभकित में है जिसे कर्तृवाच्य में प्रथमा विभकित में बदलना है। दूसरी बात क्रिया की है। मैं बता चुका हूं कि भाव वाच्य और कर्म वाच्य में क्रिया साधारण तरीके से नहीं लिखी जाती केवल कर्तृरि वाच्य में ही साधारण तरीके से लिखते हैं। जैसा की उदाहरण में (क्रिड्यते को क्रीड़ति) किया गया है।
अकर्मक
क्रिया   कर्तानुसार कर्मानुसार प्र.पु.ए.वचन

विशेष बातें:-
-वाच्यों में जिसमें प्रथमा विभकित होती है वही प्रधान होता है या जो प्रधान होता है उसमें प्रथमा विभकित होती है और क्रिया हमेशा जो प्रधान होगा उसके अनुसार ही होगी।
-कर्मवाच्य और भाव वाच्य में क्रिया शबद में अकसर ए की मात्रा लगी होगी।

Sanskrit Vachya parivartan : वाच्य परिवर्तन

Sanskrit Vachya parivartan

वाच्य परिवर्तन



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वाच्य परिवर्तन कैसे होता है। यह समझने के लिए हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि वाच्य आखिर होते कया हैं। दरअसल किसी भी बात को प्रकट करने का तरीका ही वाच्य होता है। वाच्य यानि कहना।
इस वाच्य या कहने के ही तीन तरीके हो सकते हैं। इसी आधार पर संस्कृत में वाच्य की अवधारणा ने जन्म लिया। ये तीन वाच्य हैं:-

1 कर्तृवाच्य
2 कर्मवाच्य
3 भाववाच्य

विशेष बातें:-

-एक बात तो यह विशेष है कि वाच्य जिस नाम से होता है उसी का सीधा संबंध क्रिया से होता है। जैसे कर्तृवाच्य में कर्ता का संबंध क्रिया से होगा, कर्म वाच्य में कर्म का संबंध क्रिया से होगा और भाव वाच्य में भाव का संबंध भाव से होगा।


-उसी प्रकार क्रिया का संबंध होता है। यानि कर्तृवाच्य में क्रिया कर्ता के अनुसार, कर्मवाच्य में कर्म के अनुसार और भाववाच्य में भाव के अनुसार क्रिया होगी।
-केवल कर्तृवाच्य में ही क्रिया साधारण रूप से मिलेगी, जबकि कर्मवाच्य और भाववाच्य क्रिया साधारण रूप से लिखी नहीं मिलेगी।
-भाववाच्य में क्रिया हमेशा प्रथम पुरुष एक वचन में ही मिलेगी।

कर्तृवाच्य:-

इस वाच्य की विशेषता यही है कि इसमें कर्ता की प्रधान होता है। यानि जो भी क्रिया की जाती है वह सीधे तौर पर कर्ता से जुड़ी होती है। यानि करने वाला कर्ता ही होता है और वह स्पष्ट होता है। जैसे राम उद्यान में जाता है। यहां उद्यान में जाने वाला राम है। यह बात स्पष्ट है।
दूसरी बात कर्तृवाच्य में कर्ता में प्रथमा विभकित होती है और कर्म में द्वितीय विभकित होती है। हम एक वाकय लेते हैं। जैसे:-

राम: उद्यानं गच्छति ।

यहां राम कर्ता है और इसमें प्रथमा विभकित है। उद्यान कर्म है और इसमें द्वितीय विभकित है। तीसरी बात आती है क्रिया की। यहां जाना क्रिया है और कर्तृवाच्य में क्रिया हमेशा कर्ता के अनुसार ही होती है। ऐसा नियम है। राम प्र.पु.ए.व. में है तो क्रिया भी प्र.पु.ए.व. में ही होगी। इसलिए हम यहां गच्छति रूप का प्रयोग करेंगे।
एक बात और क्रिया दो प्रकार की होती है।

1 सकर्मक क्रिया
2 अकर्मक क्रिया

सकर्मक क्रिया वह होती है जिसमें कर्म साथ में दिखाई दे। जैसे राम उद्यान में जाता है। यहां स्पष्ट है कि राम उद्यान में ही जा रहा है। इसलिए यह सकर्मक क्रिया है।
सकर्मक क्रिया की दूसरी पहचान यह है कि जिस वाकय में कया या कहां का जवाब मिल जाए वहां सकर्मक क्रिया ही होती है।
जैसे राम उद्यान जाता है एक वाकय है। इस वाकय से हम प्रश्न करेंगे कि राम कहां जा रहा है तो जवाब मिल जाता है कि उद्यान जा रहा है।
दूसरी क्रिया है अकर्मक क्रिया। इसमें कर्म कर्ता और क्रिया के साथ नहीं होता। जैसे सीता पढ़ती है। यहां इस बात का जवाब नहीं मिल रहा है कि सीता कया पढ़ती है। इसलिए यहां कर्म का अभाव है। इसलिए इसे अकर्मक क्रिया कहते हैं।
ऐस वाकयों यानि अकर्मक वाकयों में कर्तृवाच्य के दौरान कर्ता में प्रथमा और क्रिया कर्ता के अनुसार ही होगा। कर्म अनुपस्थित रहेगा। जैसे:-
सीता पठति।

कर्मवाच्य

कर्मवाच्य में क्रिया का संबंध कर्म से होता है। इसलिए इसमें कर्म ही प्रधान होता है। कर्ता कोई भी हो सकता है या बदला भी जा सकता है। ऐसा माना जाता है।
कर्मवाच्य में यह बात याद रखें कि कर्ता हमेशा तृतीय विभकित में ही होगा और कर्म में हमेशा प्रथमा होगी। इसलिए शबद रूप याद करना जरूरी है।
एक बात और कर्मवाच्य में क्रिया कर्म के अनुसार होती है, जबकि ऊपर बताया जा चुका है कि कर्तृवाच्य में क्रिया कर्ता के अनुसार होती है। यह फर्क हमेशा याद रखें।
अब उदाहरण से समझते हैं:-
रामेण पुस्तकम् पठ्यते ।
यह वाकय कर्मवाच्य का है। इसमें ध्यान से देखो:-
कर्ता राम है और इसमें तृतीय विभकित है।
पुस्तक कर्म है और इसमें प्रथमा विभकित है।
जबकि क्रिया पठ्यते साधारण नहीं देकर अलग रूप में दी गई है।

विशेष:- यहां बात याद रखने योगय है कि कर्मवाच्य में और भाव वाच्य में क्रिया कभी भी साधारण रूप से जैसे कि पठति, पठत: पठन्ति इस प्रकार नहीं मिलेगी। कर्मवाच्य और भाववाच्य दोनों में क्रिया का अलग रूप पठ्यते, लिख्यते, क्रियते आदि इस प्रकार से मिलेंगे। इससे आप बतौर पहचान भी कायम कर सकते हैं कि कर्तृवाच्य कौन सा है और कर्मवाच्य या भाववाच्य कौन सा।

भाववाच्य

भाववाच्य में क्रिया का संबंध कर्ता और कर्म दोनों से ही नहीं होता। यहां क्रिया का संबंध भाव से ही होता है।
एक बात और आपको भाववाच्य में कभी भी कर्म नहीं मिलेगा। जैसे:-
छात्रेण क्रीड्यते ।
इस वाकय में कर्म नहीं है। यानि भाववाच्य का वाकय हमेशा अकर्मक ही होगा। सकर्मक और अकर्मक का भेद मैं ऊपर बता चुका हूं। तथानुसार आप देख लें।
ऊपर दिए गए उदाहरण से स्पष्ट है कि भाववाच्य में कर्ता में हमेशा तृतीय विभकित ही होगी और क्रिया हमेशा प्रथम पुरुष एकवचन में ही होगी।

यह सब समझने के बाद अब आप आसानी से वाच्यों को आपस में परिवर्तन कर सकते हैं। यह जानकारी अगले अध्याय में दी जाएगी।

Modern poet of sanskrit 2 : संस्कृत के अर्वाचीन कवि 2

Modern poet of sanskrit 2 : संस्कृत के अर्वाचीन कवि 2                Important questions for Sanskrit TGT, PGT, PRT, REET, CTET, UPTET, HTET, RPSC, NET, SLAT, UPSC, UPPSC, NET, SLAT,IAS, IAS, RAS, SSC. Exams 


                                                                 पद्म शास्त्री

 

पद्म शास्त्री उत्तरप्रदेश के सिंगली गांव रहने वाले थे। उनका जन्म 1935 में सिंगली में हुआ था। इनके पिता का नाम बद्रीदत्त ओझा था। इन्हें 15 अगस्त 2013 में राष्ट्रपति पुरस्कार दिया गया। 


इनकी प्रसिद्ध कृति है विश्वकथाशतकम जिसे दो भागों में 1987 और 1988 में जयपुर के देवनगर प्रकाशन से प्रकाशित किया गया। 

प्रमुख रचनाएं

1 लेनिनामृतम:- यह एक महाकाव्य है जिसमें 15 सर्ग हैं। यह वीर रस प्रधान महाकाव्य है और इसमें लेनिन के बारे में बताया गया है।
2 स्वराज्यम :- यह एक खंड काव्य है और इसमें 5 सर्ग हैं। इसमें भी वीर रस प्रधान है और इसमें भारत चीन युद्ध के बाद की स्थितियों पर प्रकाश डाला गया है।
3 इनके भी तीन शतक प्रसिद्ध हैं। जिनमें :-
4 सिनेमा शतकम :- इस खंड काव्य में सिनेमा से सांस्कृतिक प्रदूषण के बारे में बताया गया है।
2 विश्वकथाशतकम :- इसमें विभिन्न देशों की सौ लोक कथाओं का जिक्र किया गया है। इसकी प्रसिद्ध कथा स्वर्णकाक: है जो कि वर्मा या म्यामार की कथा है।
3 चायशतकम
-मदीया सोवियत यात्रा
-पद्यपंचतंत्रम
-महावीरचरितामृत
-बंगलादेशविजय
-लोकतंत्र विजय आदि इनकी अन्य रचनाएं हैं।


डॉ प्रभाकर शास्त्री

डॉ प्रभाकर शास्त्री का जन्म 13 अप्रेल 1939 को जयपुर में हुआ था। इनके पिता का नाम वृद्धि चंद शास्त्री था। वे भी संस्कृत के विद्वान थे।
डॉ शास्त्री राजस्थान संस्कृत अकादमी के मानद निदेशक रहे थे और बीकानेर से प्रकाशित विश्वम्भरा पत्रिका के संपादक भी रहे। जैन मुनि विद्यासागर रचित श्रमणशतकम का संपादन भी इन्होंने किया।
प्रमुख रचनाएं:-

इन्होंने तीन रूपक लिखे

1 जगदगुरुशंकराचार्य
2 महाकविर्माघ
3 विल्हणचरित

इसके अलावा 

4 आत्मवेदना एक कहानी है
5 संस्कृत गद्यप्रभा
6 याज्ञवल्क्यस्मृति (आचाराध्याय)

सूर्यनारायण शास्त्री

पंडित सूर्यनारायण शास्त्री हरियाणा के रहने वाले थे और इनका जन्म महेन्द्रगढ़ में सन 1883 में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा जयपुर में हुई और ये आजीवन संस्कृत रत्नाकर पत्रिका से जुड़े रहे। वर्ष 1951 में इनकी मृत्यु हुई।

प्रमुख रचनाएं

इनकी प्रमुख रचनाओं में मानवंशमहाकाव्यम प्रमुख है जो कि ऐहितासिक महाकाव्य है और इसमें 17 अंक हैं।
दूसरी रचना है दुर्लभदाम्पत्यम जो कि एक कहानी संबंधित रचना है।

Sanskrit shabda roop Trick : संस्कृत में शब्द रूप याद रखने का सबसे आसान तरीका

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संस्कृत में शब्द रूप याद करने के लिए टेबल यहाँ से डाउनलोड करें

शब्द रूप की short Trick टेबल PDF यहाँ से डाउनलोड करें |

इस ट्रिक के माध्यम से आप संस्कृत का कोई सा शब्द रूप बना सकते हैं। यह टेबल आपको तृतीय विभक्ति से सप्तमी विभक्ति के रूप बनाने में मददगार साबित होगी। कुछ रूप बनाने के नियम इससे अलग हो सकते हैं। यह टेबल मेरे पर्सनल अनुभव पर आधारित है और केवल आपकी सुविधा के लिए यहां दी गई है।

विशेष:- प्रथम और द्वितीया विभक्ति के रूप याद करने में आसान होते हैं इसलिए केवल तृतीया से सप्तमी की ट्रिक बताई गई है। 



-इनके अलावा अकारान्त पुलिंग के रूप राम, नर, कृष्ण, पुरुष, उदर, पर्वत, सागर विद्यालय, ग्राम सभी राम की तरह चलेंगे।
-अकारान्त नपुंसकलिंग के रूप मित्र, नेत्र, नयन, फल, कमल, भोजन, जल, पुस्तक, नगर के रूप मित्र के समान चलेंगे।

-अस्मद और युष्मद अलिंग हैं। 


-संबोधन में मूल शब्द में इ की मात्रा ऐ में, बड़ी मात्रा छोटी मात्रा में और हलन्त ज्यों का त्यों रहता है।
-सभी तरल पदार्थ नपुसकलिंग होते हैं।

नोट:- कुछ शब्द रूप उक्त नियमों से भिन्न भी हो सकते हैं।

Sanskrit Natya saar : रूपक सार

Sanskrit Natya saar : रूपक सार



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इस टेबल को PDF के रूप में डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें |



इस टेबल में आपको रूपक साहित्य यानि नाट्य साहित्य के बारे में सबकुछ बताया गया है। आप इसे इस लिंक से डाउनलोड करें और प्रिंट लेकर या फिर मोबाइल पर सेव कर एग्जाम देने जाने से पहले देखकर जाएं। आपको जरूर फायदा होगा।






रूपक सार


क्रमांक अंक           विषयवस्तु                नायक                    प्रमुख रस


नाटक 5-10   इतिहास प्रसिद्ध                   धीरोदात्त                     शृंगार या वीर
               (ख्यातवृत)

प्रकरण 10         लौकिक या कवि कल्पित           विप्र/आमात्य/वणिक                      शृंगार

भाण      एकांकी        कविकल्पित                  धूर्तचरित                              वीर या शृंगार

प्रहसन   एकांकी कवि कल्पित               निद्य/कविकल्पित                      हास्य

डिम    4         ख्यातवृत या ऐतिहासिक        16 प्रकार के                               रौद्र

व्यायोग एकांकी ख्यातवृत              राजर्षि/दिव्य/धीरोदात्त            शृंगार के अलावा

समवकार  3     देवासुराश्रय ख्यात             12 दवेता या मनुष्य                   वीर
            (पौराणिक या ऐतिहासिक)

वीथी      एकांकी       कवि कल्पित              कल्पित/साधारण                           शृंगार

अंक     एकांकी        प्रख्यात (इतिहास प्रसिद्ध)   प्राकृतनर (साधारण)                   करुण

ईहामृग 4       मिश्रवृत              10 तरह के                                   शृंगार

Important Question about Rigveda : ऋग्वेद

Important Question about Rigveda : ऋग्वेद

ऋग्वेद के मौलिक अंश



ऋग्वेद के मौलिक अंश में 2 से 7 कांड तक ही हैं। इनमें प्रत्येक मंडल में एक ही ऋषि और उनके वंशजों द्वारा दृष्ट मंत्रों का संग्रह है। दो से लेकर सातवें मंडल तक सूक्तों की संख्या बढ़ती जाती है और इनका क्रम सूक्त संख्या पर ही आधारित है।
-आठवें मंडल में कई ऋषियों के वंशजों द्वारा दृष्ट मंत्रों का संग्रह है।
-नवम मंडल में सोम पवमान से संबंध सभी मंत्रों का संग्रह दिया गया है।
-प्रथम मंडल भी बाद में जोड़ा गया है और इसमें विभिन्न ऋषियों द्वारा दृष्ट मंत्रों का संकलन है।
-इसी प्रकार मंडल दस भी बाद में ही जोड़ा गया है। इसमें भाषा व्याकरण छंद शब्दावली नए भाव दार्शनिक विषय आदि संकलित हैं।
-पहले और दसवें मंडल में सूक्तों की संख्या समान है।

ऋग्वेद की शाखाएं

पतंजलि ने ऋग्वेद की 11 शाखाएं बताई हैं लेकिन पांच ही उपलब्ध हैं।

चरणव्यूह के अनुसार पांच शाखाएं :-

1 शाकल
2 वाष्कल
3 आश्वलायन
4 शाखायन
5 माण्डूकायन

-फिलहाल शाकल शाखा की ऋग्वेद संहिता उपलब्ध है जबकि वाष्कल शाखा की संहिता उपलब्ध नहीं है।
-आश्वलायन शाखा की बात करें तो इसके केवल श्रौत और गृह्यसूत्र ही उपलब्ध हैं।
-शांखायन शाखा के ब्राह्मण और आरण्यक ग्रंथ ही प्राप्य हैं।
-माण्डूकायन शाखा का कुछ भी उपलब्ध नहीं है। इसका केवल नाम ही शेष रह गया है।

विशेष बात:- ऋग्वेद में देवता शब्द प्रतिपाद्य विषय के रूप में आता है। इसका अर्थ यहां देवता यानि भगवान या गौड नहीं है। विदेशी विद्वानों ने इसका अर्थ देवता यानि भगवान कर दिया है। 


प्रमुख देवता और निवास स्थान

महाकवि यास्क ने निरुक्त के अध्याय सात से 12 तक दैवत कांड में वैदिक देवताओं का विवेचन दिया है। उनके अनुसार देवताओं को तीन भागों में विभक्त कर सकते हैं।

पृथ्वी स्थानीय:-अग्नि
अन्तरिक्ष स्थानीय:-इन्द्र और वायु
द्युस्थानीय:-सूर्य

-बाकी सभी को सहयोगी देवता माना गया है।
-ऋग्वेद में कहीं भी देवताओं की पूजा और देवताओं की मूर्ति का जिक्र नहीं आता।
-ऋग्वेद में देवों की संख्या 33 बताई गई है। इन्हें त्रिगुण एकादश भी कहा गया है। 11 गुणा 3

-ऋग्वेद में इन्द्र पर 250, अग्नि पर 200 और सोम पर 100 सूक्त मिलते हैं। 

-पर्जन्य ओर यम पर केवल तीन तीन सूक्त ही मिलते हैं।
-ऋग्वेद में शिव का भयंकर रुद्र के रूप में जिक्र आता है।

रचनाकाल :-

वेदों का रचनाकाल स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है। अलग अलग विद्वानों के अनुसार रचनाकाल अलग अलग है।
दयानंद सरस्वती के अनुसार:- सृष्टि के आरंभ से ही हैं

दीनानाथ शास्त्री चूलेट :-तीन लाख वर्ष पूर्व
रघुनन्दन शर्मा के अनुसार:-88 हजार वर्ष पूर्व
अविनाशचन्द्र दास के अनुसार :- 25 हजार ईसा पूर्व
बाल गंगाधर के अनुसार:- 6 हजार ईसा पूर्व
याकोबी के अनुसार:- 4500 ईसा पूर्व से लेकर 2500 ईसा पूर्व
विंटरनिट्ज के अनुसार :- 2500 ईसा पूर्व
मैक्समूलर के अनुसार :- 1200 ईस पूर्व

-विशेष:- सुविधा की दृष्टि से निष्कर्ष के रूप में वैदिक साहित्य क समय चार हजार ईसा पूर्व से एक हजार ईसा पूर्व तक मान लिया गया है।

Modern poet of sanskrit : संस्कृत के अर्वाचीन कवि

Modern poet of sanskrit : संस्कृत के अर्वाचीन कवि


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भट्ट मथुरानाथ शास्त्री


भट्टा मथुरानाथ शास्त्री का जन्म जयपुर में 1889 में हुआ था औ उनकी मृत्यु 1964 में हुई। इन्हें कवि शिरोमणी और कवि सार्वभौम भी कहा जाता है। इनके पिता का नाम द्वारकानाथ भट्ट और माता का नाम था जानकी देवी।
कलानाथा शास्त्री इनके पुत्र थे और वे भी आधुनिक कवियों में प्रथम पंक्ति के कवि थे। प्रत्येक वर्ष भट्ट मथुरानाथा शास्त्री के नाम पर एक पुरस्कार भी दिया जाता है।

प्रमुख कृतियां

भट्टा मथुरानाथा शास्त्री की प्रमुख कृतियों में मंजुनाथ नामक काव्य बहुत प्रसिद्ध है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन्होंने इस काव्य में ब्रज भाषा के कवित्त और सैवयों का प्रयोग किया है।
इसके अलावा इनका दूसरा ग्रंथ जो प्रसिद्ध है उसका नाम मंजुकवितानिकुंज है। मथुरानाथ शास्त्री ने कुल चार वैभव ग्र्रंथ लिखे हैं। जिनके नाम इस प्रकार हैं:-
1 जयपुर वैभव
2 साहित्य वैभव
3 गोविन्द वैभव
4 भारत वैभव
-इन में से जयपुर वैभव, साहित्य वैभव और गोविन्द वैभव को मंजुकवितानिकुंज में शामिल किया गया है।
-ये जयपुर से प्रकाशित संस्कृत रत्नाकर के प्रथम संपादक (1904 से 1949 तक) भी रहे हैं।
-इसके अलावा इन्होंने भारती पत्रिका का संपादन (1954 से 1956 तक) भी किया है।

रचनाएं

चार वैभव ग्रंथ :-

1 जयपुर वैभव
2 साहित्य वैभव
3 गोविन्द वैभव
4 भारत वैभव

उपन्यास :-

1 आदर्श रमाणी
2 मानसिंह

टीका ग्रंथ :-

1 रसगंगाधर टीका
2 कादम्बरी टीका

वाटिका ग्रंथ :-

1 साहित्य कुसुम वाटिका
2 विनोद वाटिका
3 समुच्य ग्रंथ :-

4 गाथारत्न समुच्य

देवर्षि कलानाथ शास्त्री

-कलानाथ शास्त्री मथुरानाथ शास्त्री के पुत्र थे और इनका जन्म भी जयपुर में ही 1936 में हुआ था।
-ये राजस्थान संस्कृत ग्रंथ अकादमी के अध्यक्ष (1995 से 1998 तक) रहे थे।
-वर्ष 2012 में इन्हें राजस्थान सरकार ने संस्कृत साधना शिखर सम्मान देकर नवाजा।

प्रमुख रचनाएं:-

जीवनस्य पृष्ठ द्वयं :- यह इनका प्रसिद्ध उपन्यास है। जिसके दो पात्र राकेश और कल्पना हैं। राकेश शिक्षक है और कल्पना शिष्या है। दोनों विवाह कर लेते हैं। यह उपन्यास धारावाहिक के रूप में भारती पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।

अन्य रचनाएं :-

1 रत्नावली
2 प्रबंध पारिजात
3 कथानकवल्ली
4 सुधीजनवृतम
5 नवरत्ननीति
6 गीर्वाणगिरागौरवम
7 विद्वज्जनचरितामृतम

रूपक :-


1 महाभिनिष्क्रमण
2 चित्तौडसिंह
3 प्रतापसिंह
 
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