Sanskrit Vachya parivartan
वाच्य परिवर्तन
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इस वाच्य या कहने के ही तीन तरीके हो सकते हैं। इसी आधार पर संस्कृत में वाच्य की अवधारणा ने जन्म लिया। ये तीन वाच्य हैं:-
1 कर्तृवाच्य
2 कर्मवाच्य
3 भाववाच्य
विशेष बातें:-
-एक बात तो यह विशेष है कि वाच्य जिस नाम से होता है उसी का सीधा संबंध क्रिया से होता है। जैसे कर्तृवाच्य में कर्ता का संबंध क्रिया से होगा, कर्म वाच्य में कर्म का संबंध क्रिया से होगा और भाव वाच्य में भाव का संबंध भाव से होगा।
-उसी प्रकार क्रिया का संबंध होता है। यानि कर्तृवाच्य में क्रिया कर्ता के अनुसार, कर्मवाच्य में कर्म के अनुसार और भाववाच्य में भाव के अनुसार क्रिया होगी।
-केवल कर्तृवाच्य में ही क्रिया साधारण रूप से मिलेगी, जबकि कर्मवाच्य और भाववाच्य क्रिया साधारण रूप से लिखी नहीं मिलेगी।
-भाववाच्य में क्रिया हमेशा प्रथम पुरुष एक वचन में ही मिलेगी।
कर्तृवाच्य:-
दूसरी बात कर्तृवाच्य में कर्ता में प्रथमा विभकित होती है और कर्म में द्वितीय विभकित होती है। हम एक वाकय लेते हैं। जैसे:-
राम: उद्यानं गच्छति ।
यहां राम कर्ता है और इसमें प्रथमा विभकित है। उद्यान कर्म है और इसमें द्वितीय विभकित है। तीसरी बात आती है क्रिया की। यहां जाना क्रिया है और कर्तृवाच्य में क्रिया हमेशा कर्ता के अनुसार ही होती है। ऐसा नियम है। राम प्र.पु.ए.व. में है तो क्रिया भी प्र.पु.ए.व. में ही होगी। इसलिए हम यहां गच्छति रूप का प्रयोग करेंगे।एक बात और क्रिया दो प्रकार की होती है।
1 सकर्मक क्रिया
2 अकर्मक क्रिया
सकर्मक क्रिया वह होती है जिसमें कर्म साथ में दिखाई दे। जैसे राम उद्यान में जाता है। यहां स्पष्ट है कि राम उद्यान में ही जा रहा है। इसलिए यह सकर्मक क्रिया है।
सकर्मक क्रिया की दूसरी पहचान यह है कि जिस वाकय में कया या कहां का जवाब मिल जाए वहां सकर्मक क्रिया ही होती है।जैसे राम उद्यान जाता है एक वाकय है। इस वाकय से हम प्रश्न करेंगे कि राम कहां जा रहा है तो जवाब मिल जाता है कि उद्यान जा रहा है।
दूसरी क्रिया है अकर्मक क्रिया। इसमें कर्म कर्ता और क्रिया के साथ नहीं होता। जैसे सीता पढ़ती है। यहां इस बात का जवाब नहीं मिल रहा है कि सीता कया पढ़ती है। इसलिए यहां कर्म का अभाव है। इसलिए इसे अकर्मक क्रिया कहते हैं।
ऐस वाकयों यानि अकर्मक वाकयों में कर्तृवाच्य के दौरान कर्ता में प्रथमा और क्रिया कर्ता के अनुसार ही होगा। कर्म अनुपस्थित रहेगा। जैसे:-
सीता पठति।
कर्मवाच्य
कर्मवाच्य में क्रिया का संबंध कर्म से होता है। इसलिए इसमें कर्म ही प्रधान होता है। कर्ता कोई भी हो सकता है या बदला भी जा सकता है। ऐसा माना जाता है।कर्मवाच्य में यह बात याद रखें कि कर्ता हमेशा तृतीय विभकित में ही होगा और कर्म में हमेशा प्रथमा होगी। इसलिए शबद रूप याद करना जरूरी है।
एक बात और कर्मवाच्य में क्रिया कर्म के अनुसार होती है, जबकि ऊपर बताया जा चुका है कि कर्तृवाच्य में क्रिया कर्ता के अनुसार होती है। यह फर्क हमेशा याद रखें।
अब उदाहरण से समझते हैं:-
रामेण पुस्तकम् पठ्यते ।
यह वाकय कर्मवाच्य का है। इसमें ध्यान से देखो:-
कर्ता राम है और इसमें तृतीय विभकित है।
पुस्तक कर्म है और इसमें प्रथमा विभकित है।
जबकि क्रिया पठ्यते साधारण नहीं देकर अलग रूप में दी गई है।
विशेष:- यहां बात याद रखने योगय है कि कर्मवाच्य में और भाव वाच्य में क्रिया कभी भी साधारण रूप से जैसे कि पठति, पठत: पठन्ति इस प्रकार नहीं मिलेगी। कर्मवाच्य और भाववाच्य दोनों में क्रिया का अलग रूप पठ्यते, लिख्यते, क्रियते आदि इस प्रकार से मिलेंगे। इससे आप बतौर पहचान भी कायम कर सकते हैं कि कर्तृवाच्य कौन सा है और कर्मवाच्य या भाववाच्य कौन सा।
भाववाच्य
भाववाच्य में क्रिया का संबंध कर्ता और कर्म दोनों से ही नहीं होता। यहां क्रिया का संबंध भाव से ही होता है।एक बात और आपको भाववाच्य में कभी भी कर्म नहीं मिलेगा। जैसे:-
छात्रेण क्रीड्यते ।
इस वाकय में कर्म नहीं है। यानि भाववाच्य का वाकय हमेशा अकर्मक ही होगा। सकर्मक और अकर्मक का भेद मैं ऊपर बता चुका हूं। तथानुसार आप देख लें।
ऊपर दिए गए उदाहरण से स्पष्ट है कि भाववाच्य में कर्ता में हमेशा तृतीय विभकित ही होगी और क्रिया हमेशा प्रथम पुरुष एकवचन में ही होगी।
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