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Important Question about Rigveda : ऋग्वेद

Important Question about Rigveda : ऋग्वेद

ऋग्वेद के मौलिक अंश



ऋग्वेद के मौलिक अंश में 2 से 7 कांड तक ही हैं। इनमें प्रत्येक मंडल में एक ही ऋषि और उनके वंशजों द्वारा दृष्ट मंत्रों का संग्रह है। दो से लेकर सातवें मंडल तक सूक्तों की संख्या बढ़ती जाती है और इनका क्रम सूक्त संख्या पर ही आधारित है।
-आठवें मंडल में कई ऋषियों के वंशजों द्वारा दृष्ट मंत्रों का संग्रह है।
-नवम मंडल में सोम पवमान से संबंध सभी मंत्रों का संग्रह दिया गया है।
-प्रथम मंडल भी बाद में जोड़ा गया है और इसमें विभिन्न ऋषियों द्वारा दृष्ट मंत्रों का संकलन है।
-इसी प्रकार मंडल दस भी बाद में ही जोड़ा गया है। इसमें भाषा व्याकरण छंद शब्दावली नए भाव दार्शनिक विषय आदि संकलित हैं।
-पहले और दसवें मंडल में सूक्तों की संख्या समान है।

ऋग्वेद की शाखाएं

पतंजलि ने ऋग्वेद की 11 शाखाएं बताई हैं लेकिन पांच ही उपलब्ध हैं।

चरणव्यूह के अनुसार पांच शाखाएं :-

1 शाकल
2 वाष्कल
3 आश्वलायन
4 शाखायन
5 माण्डूकायन

-फिलहाल शाकल शाखा की ऋग्वेद संहिता उपलब्ध है जबकि वाष्कल शाखा की संहिता उपलब्ध नहीं है।
-आश्वलायन शाखा की बात करें तो इसके केवल श्रौत और गृह्यसूत्र ही उपलब्ध हैं।
-शांखायन शाखा के ब्राह्मण और आरण्यक ग्रंथ ही प्राप्य हैं।
-माण्डूकायन शाखा का कुछ भी उपलब्ध नहीं है। इसका केवल नाम ही शेष रह गया है।

विशेष बात:- ऋग्वेद में देवता शब्द प्रतिपाद्य विषय के रूप में आता है। इसका अर्थ यहां देवता यानि भगवान या गौड नहीं है। विदेशी विद्वानों ने इसका अर्थ देवता यानि भगवान कर दिया है। 


प्रमुख देवता और निवास स्थान

महाकवि यास्क ने निरुक्त के अध्याय सात से 12 तक दैवत कांड में वैदिक देवताओं का विवेचन दिया है। उनके अनुसार देवताओं को तीन भागों में विभक्त कर सकते हैं।

पृथ्वी स्थानीय:-अग्नि
अन्तरिक्ष स्थानीय:-इन्द्र और वायु
द्युस्थानीय:-सूर्य

-बाकी सभी को सहयोगी देवता माना गया है।
-ऋग्वेद में कहीं भी देवताओं की पूजा और देवताओं की मूर्ति का जिक्र नहीं आता।
-ऋग्वेद में देवों की संख्या 33 बताई गई है। इन्हें त्रिगुण एकादश भी कहा गया है। 11 गुणा 3

-ऋग्वेद में इन्द्र पर 250, अग्नि पर 200 और सोम पर 100 सूक्त मिलते हैं। 

-पर्जन्य ओर यम पर केवल तीन तीन सूक्त ही मिलते हैं।
-ऋग्वेद में शिव का भयंकर रुद्र के रूप में जिक्र आता है।

रचनाकाल :-

वेदों का रचनाकाल स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है। अलग अलग विद्वानों के अनुसार रचनाकाल अलग अलग है।
दयानंद सरस्वती के अनुसार:- सृष्टि के आरंभ से ही हैं

दीनानाथ शास्त्री चूलेट :-तीन लाख वर्ष पूर्व
रघुनन्दन शर्मा के अनुसार:-88 हजार वर्ष पूर्व
अविनाशचन्द्र दास के अनुसार :- 25 हजार ईसा पूर्व
बाल गंगाधर के अनुसार:- 6 हजार ईसा पूर्व
याकोबी के अनुसार:- 4500 ईसा पूर्व से लेकर 2500 ईसा पूर्व
विंटरनिट्ज के अनुसार :- 2500 ईसा पूर्व
मैक्समूलर के अनुसार :- 1200 ईस पूर्व

-विशेष:- सुविधा की दृष्टि से निष्कर्ष के रूप में वैदिक साहित्य क समय चार हजार ईसा पूर्व से एक हजार ईसा पूर्व तक मान लिया गया है।

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